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अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
( विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना )
(भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन )
(संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन )
(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )
(भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना)
(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)
(भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना)
(बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन) )
ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः ॥11॥