जानिये, भगवान से कुछ माँगना (मनोकामना) गलत क्यो है ?



मनुष्य की स्वभाविक इच्छा यही होती हैँ की वह जो कर्म करे उसका फल उसे तुरन्त प्राप्त हो । परन्तु प्रकृति का नियम हैँ कि मनुष्य के कोई कर्म करने पर उसका फल प्राप्त करने के लिये उसे कुछ न कुछ समय प्रतिक्षा करनी ही पड़ती हैँ । परन्तु फिर भी मनुष्य की यही इच्छा होती हैँ कि उसे अपने किये कर्म का तूरन्त भुगतान हो। भारतिय धर्ब मेँ ऐसी मान्यता हैँ कि वर्तमान जीवन मेँ जो कुछ सुख -दुःख हमेँ प्राप्त हो रहा है वह पिछले जन्मोँ मेँ किये कर्मो का फल ही है तथा इस जन्म मेँ जो कुछ पाप -पुण्य रुप कर्म हम कर रहे हैँ उसका फल हमेँ आगे आने वाले जन्मोँ मेँ प्राप्त होगा अर्थात इसका अर्थ यही हैँ कि हमेँ अपने किये कर्मोँ के फल के लिये बहुत प्रतिक्षा करनी ही पड़ती हैँ । प्रस्तुत लेख मेँ हम उन कर्मोँ के बारे मेँ बताना चाहते हैँ जिनका फल हमेँ तुरन्त प्राप्त होता हैँ ।

सर्वप्रथम यह विचाल करना हैँ कि कर्म क्या हैँ ? इसे करवाता कोन हैँ ? तथा इसका कर्मफल कौन देता हैँ ?

हिन्दु दर्शन मेँ ऐसी मान्यता हैँ की ईश्वर ही सब कुछ करता हैँ अथवा करवाता हैँ तथा ईश्वर ही कर्मफल देता हैँ ।

ऐसा भी कहा जाता हैँ की जन्म के समय विधाता सभी का भाग्य लिख देते हैँ ।

जिसके अनुसार समय-समय पर यह मनुष्य भाग्य मेँ निर्धारित कर्म फल प्राप्त करता हैँ ।

इसका अर्थ तो यही हैँ कि परमेश्वर ही कर्म करवाते है और परमेश्वर ही कर्मफल देते हैँ, बेचारा मनुष्य तो कुछ करता ही नहीँ । मनुष्य तो एक कठपुतली की तरह हैँ जिसको परमेश्वर जैसा चाहे नचवा रहे हैँ । परमेश्वर जब चाहते है तब मनुष्य से अच्छे अथवा बुरे कर्म करवाते हैँ ।

इस प्रकार की धारणा हिन्दु धर्म मेँ बनी हुई हैँ जिसको श्रीमदभागवत गिता स्विकार नहीँ करती ।

भगवान श्रीकृष्ण गिता के 5 वे अध्या मेँ कहते हैँ --->

न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभु: ।

न कर्मफलसंयोग स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥

(गिता अ. 5/14)

अर्थात हे अर्जुन ! मै किसी जीव को कर्तापन नहीँ देता हूँ, अर्थात मैँ किसी जीव को यह नहीँ कहता कि वह अमुक कर्म करे तथा न ही मैँ कर्म करने की प्रेरणा देता हूँ, न ही मैँ किसी का भाग्य लिखता हुँ । जीवात्मा जो कर्म करता हैँ उसका कर्मफल भी मैँ नहीँ देता हुँ, जीव का कर्म करना स्वभाव है उसी प्रकार देवताओँ का स्वभाव उन कर्मोँ का फल देना हैँ ।

जीव कर्म करने मेँ पूर्णतया स्वतन्त्र हैँ तथा देवताओँ का स्वभाव कर्मफल प्रदान करना हैँ । देवतायेँ कर्मफल भुगवाने मेँ निष्ठुर हैँ । उनमेँ दया भाव नहीँ हैँ । जब जीव स्वतन्त्र रुप से कर्म करता हैँ तो वह स्वयः अपने कर्मो के फल अपने आपको प्रदान नहीँ कर सकता । आगे भगवान श्रीकृष्ण कहते हैँ --->

नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: ।

अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः ॥

अर्थात परमेश्वर किसी के पाप पुन्य ग्रहण नहीँ करता, अर्थात मनुष्य को ही पाप का फल दुःख तथा पुण्य का फल सुख भोगना पड़ता हैँ ।

जीव अपनी इच्छा से शुभ कर्म अथवा दुष्कर्म करता हैँ और उसी के अनुसार उसे देवता सुख अथवा दुःख भुगवाती हैँ ।

परमेश्वर देवताओँ के इस प्रकार कर्मफल प्रदान करने के कार्य मेँ किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीँ करते ।

मान लिजीये किसी बनिये से आपने उधारी पर राशन लिया था पर पिछला भुगतान न होने के कारण हमे वह बनिया राशन नहीँ देता ।

यह बात मनोकामना पर सिद्द होती हैँ मनुष्य पिछले जन्मो के कर्म की सजा भोगे बैगेर भगवान से कुछ भी माँगता हैँ तो उसे और एक कर्म लगता हैँ।

यह बात सुदामा जानता था, क्योकी वह ब्रम्हज्ञानी था इसिलिये उसने भगवान से कभी कुछ नहीँ माँगा ।

तथा कोई गरब इसिलिये हैँ क्यो की उसने पिछले जन्म मेँ कोइ गलत काम किया था ।

कोइ निसंतान पिछले जन्म अपने कोख के बच्चे को मार देता हैँ और इस जन्म मेँ उसे बच्चे नहीँ होते तो वह मुर्ख भी भगवान को प्रलोभन देता हैँ, प्रलोभन से काम न बने तो भगवान को ही कोसता हैँ ।

कोई पैसो की लालच मेँ आकर कोर्ट मेँ झुठी गवाई देता हैँ और कहता हैँ मैने कुछ नही देँखा वह इसांन जब अगल जन्म मेँ कुछ भी देखने लायक नही रहता अर्थात अंधा पैदा होता हैँ वह मुर्ख भी भगवान को ही कोसता हैँ ।

जो कोइ भी इंसान गरीब, लगंडा, लुला, अपाहिज, पैदा होता हैँ वह भी पिछले जन्म का दुषित कर्मी हैँ फिर उसे भगवान से मनोकामना माँग कर गरीबी या दुःख दुर करने का हक किसने दिया ।

कोइ इंसान बलात्कार करके लडकी को जिंदा जला देता हैँ और बच जाता हैँ पर वह बचता नहीँ अगले जन्म मेँ वह भी लडकी का जन्म पाता हैँ और जिन्दा जलाया जाता हैँ । यह चक्र चलता रहता हैँ, हर किसि लडकी के साथ बलात्कार नहीँ होते जो पिछले जन्म के दोषी हैँ वह भी भगवान से पुछते हैँ की हमने कौन सा पाप किया था ।

इसिलिये ना तो दुषित कर्म करने चाहिये और न ही भगवान से मनोकामना माँगनी चाहिये , आपके नारियल, पैसे, सोने और चांदी की भगवान कोई जरुरत नहीँ हैं, भगवान को प्रेम की आवश्यकता है।

हे अर्जुन ! जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ ॥GEETA 9-26॥

सब कुछ कर्मो पर हैँ क्योकी अच्छे कर्म हो तो चाय बेचने वाला भी प्रधान मंत्री (Narendra Modi) बनाता हैँ नहीँ तो रजवाडो मेँ पलने वाला भी पप्पु (Rahul Gandhi/Shah) कहलाता हैँ ।